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गुरुवार, 31 अगस्त 2017

जागरण गीत

भोर  भई  रवि  की  किरणें  धरती  कर  आय  गईं  शरना
लाल  सवेर  भई  उठ  जा  कन-सा  अब  देर  नहीं  करना//
गान  करैं  चटका  चहुँओर   सुकाल  भई  सब  धावति  हैं
नीड़न  मा बचवा बचिगै  जिन मां  कर  याद  सतावति  हैं
फूलन  की  कलियॉ  निज  कोष  पसारि सुगंध लुटावति हैं
मानव हों अलि हों  सबको  निज  रूपन  मा  भरमावति हैं//
देख  सुकाल  सुमंगल  है   इनको   निज  नैनन  में  भरना
लाल  सवेर  भई  उठ  जा  कन-सा  अब  देर  नहीं  करना//
खेतन और बगीचन  पै  रजनी  निज  ऑसु  बहाय  गई  है
पोछन को रवि की किरणें द्युति साथ  धरातल  झीन नई है
पोशक दोष विनाशक जो अति कोमल-सी अनुभूति भई है
सागर में सुख के उठि के अब चातक मोतिन खोजि लई है//
दॉत  गिनै  मुख  खोलि  हरी  कर  भारत  भूमि नहीं डरना
लाल  सवेर  भई  उठ  जा  कन-सा  अब  देर  नहीं  करना//
खेतन  मा  मजदूर  किसान  सभी  निज काज सँवार रहे हैं
गाय बँधी बछवा बछिया  निज  भोजन  हेतु  जुहार  रहे  हैं
प्राण-अपान-समान-उदान तथा  नित  व्यान  पुकार  रहे  हैं
जीवन  की गति  है जहँ  लौ  सब  ईश्वर  के उपकार रहे हैं//
आय  सुहावन  पावन  काल   इसे  निज  अंकन  में  भरना
लाल  सवेर  भई  उठ  जा  कन-सा  अब  देर  नहीं   करना//
रैन गई चकवा  चकवी  विलगान  रहे  अब  आय  मिले  हैं
ताप मिटा मन कै सगरौ  तन  से  मन से पुनि जाय खिले हैं
बॉध रहे  अनुराग, विराग  सभी  उर  से  विसराय  किले  हैं
साधक  योग करैं  उठि  कै  तप  से निज हेतु बनाय विले है//
प्राण  सजीवनि  वायु  चली  अब  तौ   सगरौ दुख कै हरना
लाल  सवेर  भई  उठ   जा  कन-सा  अब  देर  नहीं  करना//
यह है जल लो मुख धो  करके अभिनंदन सूरज का कर लो
मिटता मन का सब  ताप उसे  तुम भी अपने उर में भर लो
बल-आयु बढ़े यश भी  बढ़ता  नित ज्ञान मिलै उर में धर लो
अपमान मिले सनमान मिले  सुख की अनुभूति करो उर लो//
जाय  पढ़ो  गुरु  से  तुम   पाठ   प्रणाम  करो  उनके  चरना
लाल  सवेर  भई  उठ  जा   कन-सा   अब  देर  नहीं  करना//
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2017/08/blog-post_31.html

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

अवधी गीत

मित्रों एक लोक गीत समर्पित है=>

पिया आये तौ घरवा दुवार अजब महकै लागा।
सुनी कोयल कै मीठी पुकार जिया चहकै लागा॥
अखिया से अखिया मिली उनसे जैसे,
सोचि न पाई बाति करी वनसे कैसे,
मिटा मनवा कै हमरे गुबार,जिया लहकै लागा।
पिया आये""""॥
तोहरी सुरति पिया कब से बसायन,
तोहरे दरश कहैं जिनगी गवायन,
बहि अँखियन से अँसुवन की धार,
पिया बहकै लागा।
पिया आये""""॥
जिनगी सुफल भई तोहरा के पायन,
प्रेम कै गीति आजु मनवा से गायन,
उठै बार-बार मन मा मल्हार,
जिया कहुँकै लागा।
पिया आये""""॥
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2017/08/blog-post.html

सोमवार, 28 अगस्त 2017

        मुक्तक--------
प्रेम  उल्लास  मन  के  सभी ढह  गये
स्वार्थ ही स्वार्थ में सबके सब बह गये
नेह अन्तस  में  दोनों के  पलता  नहीं
आज  सम्बन्ध-सम्बन्ध  नन  रह गये//
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2017/08/blog-post.html
           मुक्तक--__
गुरु बिना तत्व का भान होता नहीं
तत्व से जो विमुख मान होता नहीं
अपने मन की भुनाता भले ही रहे
शोध बिन सत्य का ज्ञान होता नहीं//
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2017/08/blog-post.htm
            मुक्तक--------

प्रेम होता है  अनुबन्ध  होता  नही
देह का कोई  सम्बन्ध  होता  नही
होती जायें अगर कितनी भी दूरियाँ
अन्तरंग का मिलन बन्ध होता नही//

https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2017/08/blog-post.html