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सोमवार, 2 दिसंबर 2019

श्याम  मेरे  प्राण - प्यारे  तेरे  दर्शन  को  प्यासी हूँ।
करूँ अब अनवरत सेवा तेरे चरणों की दासी हूँ।।
सहारा    छूटता    अपना    तुम्हारा   ही  सहारा है
तुम्हीं   में   प्राण  वसता  है  तुम्हें  मैंने  पुकारा   है।
करो  करुणा  मेरे  स्वामी  तुम्हारे  बिन उदासी हूँ।
श्याम  मेरे  प्राण - प्यारे  तेरे  दर्शन  को  प्यासी हूँ।
किया  निर्माण  यदि  मैंनें  कुआं  वापी  तलावों  का
धर्म पथ आचरण करके किया पूजन कलाओं का। 
चली  सत्कर्म  के पथ पर मैं तन मन से उपासी हूँ।
श्याम  मेरे  प्राण - प्यारे  तेरे  दर्शन  को  प्यासी हूँ।
सिंह का भाग यदि गीदड़ नहीं शोभित निगलता है
प्राण तजना ही श्रेयस्कर यही मन से निकलता है। 
तुम्हारी  सहचरी बनकर करूँ विचरण उपासी हूँ।
श्याम  मेरे  प्राण - प्यारे  तेरे  दर्शन  को  प्यासी हूँ।
मातु  गौरी  के  पूजन  की  रीति  कुल  के हमारी है
मिलन  होगा  वहीं  अपना  यही मन में विचारी है।
भान  अपना  नहीं  मुझको चाह में तव उजासी हूँ।
श्याम  मेरे  प्राण - प्यारे  तेरे  दर्शन  को  प्यासी हूँ।https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/12/blog-post.html

शनिवार, 23 नवंबर 2019

श्याम सुन्दर तुम्हें निशिदिन नयन भरकर निहारूँ मैं
नाम  जिह्वा  पे  जब  आये  तुम्हारा  ही  पुकारूँ मैं।।
कौन किसका जगत में है नाम का ही सहारा है
तुम्हीं अवलम्ब हो मेरे भला किसको उचारूँ मैं।। 
पड़ा मझधार में अब मैं तुम्ही पतवार हो मेरे 
नहीं सामर्थ्य है अपनी स्वयं नौका उबारूँ मैं।। 
माया में ही उलझा हूँ नहीं सुलझा जिसे पाया 
कमाया ही नहीं कुछ भी जिसे चरणों में वारूँ मैं।।
नहीं अक्षत नहीं कुमकुम नहीं नैवेद्य की थाली 
भावों के सुमन से ही तेरी आरति उतारूँ मैं।। 
कृपामय कर कृपा मुझ पर निवेदन कर रहा तुमसे 
तारा सबको है मुझको भी तारोगे बिचारूँ मैं।।https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/11/blog-post.html

बुधवार, 20 नवंबर 2019

श्याम     हमारे     दीन        पुकारे
आ  जाओ   नंद   दुलारे,
दरश के लिए।।
लागी लगन तुमसे सूझे न कुछ भी
झरते   नयन    रतनारे,
दरश के लिए।।
साँसें   जपें   तुमको  उर  में  समाये
तुम   ही   हो  प्राणाधारे,
दरश के लिए।।
तुम हो दिवस मेरे रजनी भी तुम ही
साँझ    भई    भिनसारे,
दरश के लिए ।।
दास  प्रभू  तेरा  विनती  करे  तुमसे
ले चलो भव से  किनारे,
दरश के लिए ।।https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/11/blog-post.html

शनिवार, 9 नवंबर 2019

मन से  राम  भजो  या  श्याम
भज लो निशिदिन आठो याम।
भव  से  पार  करे   हरि  नाम- 2।।
जिसने गज को मुक्ति दिलाया
विष को अमृत किया पिलाया।
भज  लो  उसको सुबहो शाम
भव  से  पार  करे   हरि  नाम।। 
जिसने  अन्तर्मन   से   ध्याया
सुख वैभव यश सब कुछ पाया। 
दूर     हो    गये    सारे    झाम
भव  से   पार  करे   हरि  नाम।। 
रूपमाधुरी     कर      रसपान
शाश्वत गुण  का कर गुणगान। 
सोहे    श्यामा   जिसके   वाम
भव  से  पार  करे   हरि  नाम।।
सारे  कर्मों   को   कर   अर्पण
जग की अभिलाषा कर तर्पण। 
बन    जायेंगे   बिगड़े    काम
भव  से  पार  करे   हरि  नाम।।https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/11/blog-post.html




रविवार, 27 अक्तूबर 2019

दीपमालिका  सज  गयी  पावन  उत्सव  पाय
उर आनन्दित हो  गया  खुशियां  नहीं समाय।
खुशियां नहीं समाय विविध विध रच रंगोली
मीठे    की    भरमार   देख    झूमे    हमजोली।
गणपति  गौरि  मनाय साथ में मातु कालिका
महालक्ष्मी    पूजन      करती     दीपमालिका।।
दीपावली पर्व की असीम शुभकामनाएं
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/10/blog-post_27.html

रविवार, 13 अक्तूबर 2019

गजल

घनश्याम  का   सहारा,गोविन्द   नाम   प्यारा।
करुणानिधान      आये,जिसने   उसे   पुकारा।।
जब जा रही थी लज्जा,आवाज   दी   द्रुपदजा।
आया  वो  लाज  रखने, बस कर दिया इशारा।।
रस्ता   बहारी    शबरी, चन्दन लगायी कुबरी।
दर्शन    दिया    प्रभू   ने, जी भरके  है  निहारा।।
गजराज   को     उबारा, फिर ग्राह को है मारा।
विषपान    किया    मीरा, गोपाल    है    हमारा।।
सनमान  से   जो   पाया, विदुरानी साग खाया।
लज्जा  रखी  भगत  की, सम्मान   हो  विचारा।।
भज  नाम  गुरु  से पाया, वेदों  ने  भी  है गाया।
अब मिल गया जो न हो, मानुष जनम दोबारा।।
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/10/blog-post_13.html


शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

गीत

हे   यदुनन्दन   हे    राधापति, माधव  तुमको कोटिश प्रणाम
चैतन्य रूप तव अतुलित गति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम ।।
संदर्भ  रहित  तुम  गुणनिधान,  अध्यायों  में अतिमधुर गान
तुम  निराकार  साकार  तुम्हीं,   प्रगटित   है  तुमसे नवविहान।।
संपूर्ण   जीव   के    पूर्ण   यति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम
हे   यदुनन्दन   हे    राधापति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम ।।
अन्तर्यामी     हो    मायापति, मधु - व्याप्त सुधा    के गागर हो
तुम जगत नियन्ता सर्वेश्वर, सर्वज्ञ सकल सुख
सागर हो
तुम व्यय ही हो तव नहीं छति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम 
हे   यदुनन्दन   हे    राधापति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम ।।
कण - कणवासी हो अविनाशी, अवतार रहित, अवतार रूप 
सम्मोहित जगती सकल जीव, जीवों के तुम ही सार रूप 
ज्ञानी   में  भरते  विमल  मति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम 
हे   यदुनन्दन   हे    राधापति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम ।।
मन वचन काय त्रयताप विनाशक, बुद्धि विकासक तारक हो
नटराज तुम्हीं ऋतुराज तुम्हीं, ऋतुऐं परिवर्तन कारक हो
तव सुन्दरता झुक जाती रति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम 
हे   यदुनन्दन   हे    राधापति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम ।।
अब कृपा करो हे कृपासिन्धु, मम जीवन तरणी पार करो
आशीष  प्रदान  करो अपना, प्रारब्ध भुला उद्धार करो
परिपूरित  क्षमाशीलता कति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम 
हे   यदुनन्दन   हे    राधापति, माधव तुमको कोटिश प्रणाम ।।
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/10/blog-post_5.html







गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

गीत

मन मोहन का सुमिरन कर ले, भज ले माधव प्यारे
बोलो राधे राधे,
बोलो जय श्री राधे
कर ललाट धनु तिलक सुहावै, भज ले राघव प्यारे
बोलो राधे  -  राधे
बोलो जय श्री राधे
विषयों के विष में देखो कैसी बनी है आज जिन्दगी
दम्भ - द्वेष से तन में मन में भरी है कितनी  गन्दगी
दूर करो सब विषय वासना, सबको नाधव प्यारे
बोलो राधे  -  राधे
बोलो जय श्री राधे
सुभग छटा है जिनकी तिरछी नजर है मुस्कान भी 
अपने भगत के लिए तजते  हैं  अपना जो मान भी 
जिसको भज के सखा बन गये, कान्हा ऊधव प्यारे
बोलो राधे  -  राधे
बोलो जय श्री राधे
भजन करेगा तुझको मुक्ति मिलेगी संसार से 
जन्म मरन के तेरे  बन्धन  कटेंगे इक बार से 
द्वार खोल देते जो अपना, हमको सूधव प्यारे
बोलो राधे  -  राधे 
बोलो जय श्री राधे
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/10/blog-post.html

सोमवार, 8 जुलाई 2019

गीत

गीत   लिखूँ   प्रीत   में  मनमीत  के  लिखूँ
भावना  में   बज   रहे   संगीत   के   लिखूँ।।
मन्त्रमुग्ध    ही    रहा    हूँ    मोहपाश    में
दृष्टिपथ    निहार   रहीं   पलकें   साथ   में
गर्मीयों   की   बात   करूँ  शीत  के  लिखूँ
भावना  में   बज   रहे   संगीत   के   लिखूँ।।
विभीषिका कठिन वसी  हृदय  के ओक में
श्वासें भी साथ  छोड़ती  हैं  शोक - शोक में
वर्तमान   की    लिखूँ   व्यतीत   के   लिखूँ
भावना   में   बज   रहे   संगीत   के   लिखूँ।।
संयोग   सुमन   सौरभित  सुवास  जो  दिये
सोंधी   सुगंध   सच  में  वरसात   की  लिये
जो   भाव   बाँध   लेते  उस  रीत  के  लिखूँ
भावना   में    बज   रहे   संगीत   के   लिखूँ।।
आभाव में  स्वभाव  से  ही  भाव  ही  किया
अलकों की सघन छाँव में नित आसरा दिया
हार की  लिखूँ  या  अपने  जीत   के   लिखूँ
भावना    में    बज   रहे   संगीत   के  लिखूँ।।
मनुहार    विप्रलम्भ   में   भी   भूलता   नहीं
संयोग  विना  मन - मधुप  भी  झूलता  नहीं
अंतरंग     के    उसी     अतीत    के   लिखूँ।।
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/07/blog-post.html

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

औषधियों  से  तन  अपना  पाला  हुआ
रोग  अरु   व्याधि  ने  डेरा  डाला  हुआ
अति विलम्वित हुए अपने अनुबन्ध सब
आज लगता है  मुँह अपना काला  हुआ।।

फँस  गयी   जिन्दगानी   मकड़जाल  में
जा  रही  नित्यप्रति   काल  के  गाल  में
जैसे -- तैसे   गुजारा    कहाँ    हो    रहा
कट   रही   आज   कैसी  फटे  हाल  में।।
https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/02/blog-post.html