श्याम सुन्दर तुम्हें निशिदिन नयन भरकर निहारूँ मैं
नाम जिह्वा पे जब आये तुम्हारा ही पुकारूँ मैं।।
कौन किसका जगत में है नाम का ही सहारा है
तुम्हीं अवलम्ब हो मेरे भला किसको उचारूँ मैं।।
पड़ा मझधार में अब मैं तुम्ही पतवार हो मेरे
नहीं सामर्थ्य है अपनी स्वयं नौका उबारूँ मैं।।
माया में ही उलझा हूँ नहीं सुलझा जिसे पाया
कमाया ही नहीं कुछ भी जिसे चरणों में वारूँ मैं।।
नहीं अक्षत नहीं कुमकुम नहीं नैवेद्य की थाली
भावों के सुमन से ही तेरी आरति उतारूँ मैं।।
कृपामय कर कृपा मुझ पर निवेदन कर रहा तुमसे
तारा सबको है मुझको भी तारोगे बिचारूँ मैं।।https://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2019/11/blog-post.html
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