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बुधवार, 10 सितंबर 2014

मित्रों आज चन्द मुक्तक 

माँते आँचल में अपने सुला लीजिए 
फूल\किरपा के मुझमें खिला दीजिए 
तुमसे विनती करूँ सिर झुकाये हुए 
ज्ञान के दीप मुझमें जला दीजिए ॥ १ 
















दिल में रहते सुरक्षित बिये प्रेम के 
मोह लेते हैं मन हासिये प्रेम के 
लाख चाहे बुझने की कोशिश करो 
कभी बुझते नहीं हैं दिये प्रेम के ॥ २ 


http://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2014/09/blog-post_41.html


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