Translate

बुधवार, 10 सितंबर 2014

 मित्रों आज एक अकविता पोस्ट कर रहा हूँ 
अरशे पहले होता था व्याह 
बजती थी शहनाइयाँ 
होते थे मंगलचार 
वर वधू को 
पवित्र परिणय बन्धन में 
बाँधने के लिए 
उस रिश्ते में 
नहीं दिखती थी दरारें 
कुछ जमाना बदला 
शहनाइयाँ गूँजी 
अब नहीं गूँजती 
आया अंग्रेजी बाजा 
धीरे धीरे पाश्चात्य संस्कृति 
छा गयी सब पर 
ब्रास बैण्ड की पों पों की आवाज 
जो कर्ण अप्रिय 
ये भी जमाना बदला 
आया डीजे 
ले गया सब को डायरेक्ट जहन्नुम 
टूट गए वे रिश्ते 
जो बनते थे शहनाइयों की धुनों पर 
आज वहुएं जलाई जा रहीं 
प्रेम समाप्त हो गया 
अत्याचार बढ़ता जा रहा 
नये बाद्य यन्त्रों के 
आवाजों जैसे ही । 
http://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2014/09/blog-post_52.html

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें