मित्रों आज एक अकविता पोस्ट कर रहा हूँ
अरशे पहले होता था व्याह
बजती थी शहनाइयाँ
होते थे मंगलचार
वर वधू को
पवित्र परिणय बन्धन में
बाँधने के लिए
उस रिश्ते में
नहीं दिखती थी दरारें
कुछ जमाना बदला
शहनाइयाँ गूँजी
अब नहीं गूँजती
आया अंग्रेजी बाजा
धीरे धीरे पाश्चात्य संस्कृति
छा गयी सब पर
ब्रास बैण्ड की पों पों की आवाज
जो कर्ण अप्रिय
ये भी जमाना बदला
आया डीजे
ले गया सब को डायरेक्ट जहन्नुम
टूट गए वे रिश्ते
जो बनते थे शहनाइयों की धुनों पर
आज वहुएं जलाई जा रहीं
प्रेम समाप्त हो गया
अत्याचार बढ़ता जा रहा
नये बाद्य यन्त्रों के
आवाजों जैसे ही ।
http://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2014/09/blog-post_52.html
अरशे पहले होता था व्याह
बजती थी शहनाइयाँ
होते थे मंगलचार
वर वधू को
पवित्र परिणय बन्धन में
बाँधने के लिए
उस रिश्ते में
नहीं दिखती थी दरारें
कुछ जमाना बदला
शहनाइयाँ गूँजी
अब नहीं गूँजती
आया अंग्रेजी बाजा
धीरे धीरे पाश्चात्य संस्कृति
छा गयी सब पर
ब्रास बैण्ड की पों पों की आवाज
जो कर्ण अप्रिय
ये भी जमाना बदला
आया डीजे
ले गया सब को डायरेक्ट जहन्नुम
टूट गए वे रिश्ते
जो बनते थे शहनाइयों की धुनों पर
आज वहुएं जलाई जा रहीं
प्रेम समाप्त हो गया
अत्याचार बढ़ता जा रहा
नये बाद्य यन्त्रों के
आवाजों जैसे ही ।
http://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2014/09/blog-post_52.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें