मित्रों सादर प्रणाम
एक गीत युगल किशोर के चरणों में
अनुरञ्जित करते युगल रूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम।
दो भाव मुझे तव द्वार खड़ा
दो छन्द मुझे तव द्वार पड़ा
दो गीत नई कविता मुझको
दो किरण नई सविता मुझको
शाश्वत जग के हो आप भूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम।
तुम सृजन बीज ही नित बोते
कण-कण में अाभाषित होते
मुझको दे दो बस काव्य सृजन
निश्छल दे दो प्रभु अन्तर्मन ।
वर्णित हो नित तेरा स्वरूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम ।
उपकार कर सकूँ अब सबका
आभाषित हो दुःख सब सबका
जिसमें जग का सर्वस्व निहित
जन मानस का कल्याण विहित।
मिल जाये मन अनुरूप धूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम ।
द्वेष नहीं अब दिखे कहीं
मन रुके निरन्तर प्रेम वहीं
अब ज्ञान पुञ्ज बरसावो ना
फिर नव उपदेश सुनाओ ना ।
सबको दो अपना दिव्या रूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम ।
बस यही आप से अभिलाषा
पूरन कर दो मन की आशा
तुम ही तो जग के स्वामी हो
मेरा स्वरूप निष्कामी हो ।
दे दो मुझको अपना स्वरूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम ।
http://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2014/09/blog-post_65.html
एक गीत युगल किशोर के चरणों में
अनुरञ्जित करते युगल रूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम।
दो भाव मुझे तव द्वार खड़ा
दो छन्द मुझे तव द्वार पड़ा
दो गीत नई कविता मुझको
दो किरण नई सविता मुझको
शाश्वत जग के हो आप भूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम।
तुम सृजन बीज ही नित बोते
कण-कण में अाभाषित होते
मुझको दे दो बस काव्य सृजन
निश्छल दे दो प्रभु अन्तर्मन ।
वर्णित हो नित तेरा स्वरूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम ।
उपकार कर सकूँ अब सबका
आभाषित हो दुःख सब सबका
जिसमें जग का सर्वस्व निहित
जन मानस का कल्याण विहित।
मिल जाये मन अनुरूप धूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम ।
द्वेष नहीं अब दिखे कहीं
मन रुके निरन्तर प्रेम वहीं
अब ज्ञान पुञ्ज बरसावो ना
फिर नव उपदेश सुनाओ ना ।
सबको दो अपना दिव्या रूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम ।
बस यही आप से अभिलाषा
पूरन कर दो मन की आशा
तुम ही तो जग के स्वामी हो
मेरा स्वरूप निष्कामी हो ।
दे दो मुझको अपना स्वरूप
नटवर तव चरणों में प्रणाम ।
http://jaiprakashchaturvedi.blogspot.com/2014/09/blog-post_65.html